SSC/UPSC व अन्य सरकारी परीक्षाओं के लिए प्रमुख बिंदु

  • सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने ED के समन की निंदा की।
  • वरिष्ठ अधिवक्ताओं अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को कानूनी सलाह देने पर समन भेजा गया था।
  • बार काउंसिल ने इसे वकालत की स्वतंत्रता पर हमला बताया।
  • आलोचना के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने समन वापस लिया।
  • यह मामला जांच एजेंसियों की शक्ति के दुरुपयोग को दर्शाता है।
  • विषय संविधान, न्यायपालिका, और कानूनी स्वतंत्रता से जुड़ा होने के कारण UPSC व SSC परीक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

संस्था प्रोफाइल: भारत का सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India)

  • स्थापना: 26 जनवरी 1950
  • स्थान: नई दिल्ली
  • वर्तमान मुख्य न्यायाधीश (2025): डी. वाई. चंद्रचूड़
  • कुल न्यायाधीश: 34 (मुख्य न्यायाधीश सहित)
  • नियुक्ति: भारत के राष्ट्रपति द्वारा
  • संवैधानिक अनुच्छेद: अनुच्छेद 124
  • मंत्र: “यतो धर्मस्ततो जयः” (जहाँ धर्म है, वहीं विजय है)

संस्था प्रोफाइल: प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate – ED)

  • संबंधित मंत्रालय: वित्त मंत्रालय
  • स्थापना वर्ष: 1956
  • मुख्य कानून: मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (PMLA), 2002
  • मुख्य कार्य: मनी लॉन्ड्रिंग और विदेशी मुद्रा उल्लंघनों की जांच
  • मुख्यालय: नई दिल्ली
  • वर्तमान निदेशक (2025): राहुल नवीन (बदलाव संभव)

विस्तृत विवरण

मामला क्या है?

20 जून 2025 को, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं—अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल—को समन भेजने की कड़ी निंदा की। ये समन उन कानूनी सलाहों के संबंध में थे जो उन्होंने अपने मुवक्किलों को दी थीं।

यह मामला क्यों महत्वपूर्ण है?

यह घटना कानूनी पेशे की स्वतंत्रता और न्यायिक स्वायत्तता पर गंभीर सवाल खड़े करती है। बार संस्थाओं ने चेताया कि इस प्रकार के समन न्यायिक स्वतंत्रता की नींव को कमजोर करते हैं और अधिवक्ताओं में भय का वातावरण बना सकते हैं।

बढ़ते विरोध के चलते ED ने बाद में समन वापस ले लिए

संवैधानिक और कानूनी दृष्टिकोण

  • अनुच्छेद 19(1)(g) नागरिकों को किसी भी व्यवसाय या पेशे को अपनाने का अधिकार देता है।
  • एडवोकेट्स एक्ट, 1961 वकीलों को उनके कार्य के दौरान संरक्षण प्रदान करता है।
  • यह घटना जांच एजेंसियों की अतिरेक शक्ति और संवैधानिक संतुलन के बीच टकराव को उजागर करती है।

प्रमुख व्यक्तित्वों से जुड़ी परीक्षा उपयोगी जानकारी

अरविंद दातार

  • सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता
  • संवैधानिक और कर कानूनों के विशेषज्ञ

प्रताप वेणुगोपाल

  • सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता
  • वाणिज्यिक मुकदमों में विशेषज्ञता

विकास सिंह

  • SCBA के अध्यक्ष
  • वरिष्ठ अधिवक्ता व पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल

विपिन नायर

  • SCAORA के अध्यक्ष
  • न्यायिक स्वतंत्रता के समर्थक अधिवक्ता

संभावित परीक्षा प्रश्न (MCQs)

1. जून 2025 में किन दो बार संस्थाओं ने वरिष्ठ वकीलों को समन भेजे जाने की निंदा की?

A. BCI और SCAORA
B. SCBA और SCAORA
C. SCBA और NALSA
D. BCI और NHRC
उत्तर: B. SCBA और SCAORA


2. प्रवर्तन निदेशालय किस अधिनियम के अंतर्गत मुख्य रूप से कार्य करता है?

A. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988
B. कंपनी अधिनियम, 2013
C. मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, 2002
D. राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008
उत्तर: C. मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, 2002


3. भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद किसी भी व्यवसाय या पेशे को अपनाने की स्वतंत्रता देता है?

A. अनुच्छेद 14
B. अनुच्छेद 19(1)(g)
C. अनुच्छेद 21
D. अनुच्छेद 25
उत्तर: B. अनुच्छेद 19(1)(g)


4. भारत का सुप्रीम कोर्ट कब स्थापित हुआ?

A. 15 अगस्त 1947
B. 26 जनवरी 1950
C. 26 नवंबर 1949
D. 2 अक्टूबर 1950
उत्तर: B. 26 जनवरी 1950


UPSC-स्टाइल FAQs उत्तर लेखन प्रारूप के साथ

Q1. वरिष्ठ अधिवक्ताओं को जांच एजेंसियों द्वारा समन भेजे जाने से न्यायिक स्वतंत्रता पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर:
वरिष्ठ अधिवक्ताओं को जांच एजेंसियों द्वारा समन भेजा जाना कानूनी पेशे की स्वतंत्रता और न्यायिक निष्पक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। यह धारा 19(1)(g) के तहत प्राप्त पेशा अपनाने की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। इससे कानूनी सलाह देने में भय का माहौल बन सकता है, जो कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के मूल ढांचे के विरुद्ध है। ऐसे कृत्यों से न्यायिक स्वायत्तता और कानून के शासन पर सीधा हमला होता है।


Q2. न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखने में SCBA और SCAORA जैसी बार संस्थाओं की क्या भूमिका होती है?

उत्तर:
SCBA और SCAORA जैसी बार संस्थाएं न्यायिक स्वतंत्रता और पेशेवर गरिमा की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये संस्थाएं वकीलों के अधिकारों की रक्षा करती हैं, संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करती हैं, और न्यायिक निष्पक्षता सुनिश्चित करती हैं। जब भी पेशेवर स्वतंत्रता पर खतरा होता है, ये संस्थाएं सार्वजनिक रूप से अपनी आवाज उठाकर लोकतंत्र की नींव को मजबूत करती हैं। इनके द्वारा उठाए गए कदम न्यायपालिका और विधि व्यवस्था की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने में सहायक होते हैं।