
SSC/UPSC और अन्य सरकारी परीक्षाओं के लिए मुख्य बिंदु
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पहले ट्विटर) ने आईटी अधिनियम के तहत भेजे गए कंटेंट हटाने के नोटिसों को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी।
- X के वकील ने सरकारी अधिकारियों को लेकर “Tom, Dick और Harry” जैसे शब्दों का प्रयोग किया, जिससे केंद्र सरकार और न्यायपालिका में आक्रोश पैदा हुआ।
- विवाद का केंद्र है सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A, जो सरकार को विशेष परिस्थितियों में ऑनलाइन सामग्री हटवाने का अधिकार देती है।
- केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस टिप्पणी की कड़ी आलोचना की और सरकारी अधिकारियों की वैधानिक शक्ति का समर्थन किया।
पूरी जानकारी
पृष्ठभूमि
कर्नाटक हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान सोशल मीडिया कंपनी X (पूर्व में ट्विटर) के वकील ने भारत सरकार द्वारा भेजे गए कंटेंट हटाने के नोटिसों पर सवाल उठाए। यह मुद्दा तब सामने आया जब रेल मंत्रालय ने एक वीडियो को हटाने का नोटिस भेजा, जिसमें हैदराबाद में एक महिला को रेलवे ट्रैक पर कार चलाते हुए देखा गया था।
विवादित बयान
X कॉर्प इंडिया की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के.जी. राघवन ने कहा:
“अगर हर Tom, Dick और Harry अधिकारी मुझे नोटिस भेजेगा तो देखिए कैसे इसका दुरुपयोग हो रहा है।”
इस बयान को सरकारी अधिकारियों के प्रति असम्मानजनक माना गया। इस पर केंद्र सरकार के वकील तुषार मेहता ने प्रतिक्रिया दी:
“वे अधिकारी हैं… वे वैधानिक पदाधिकारी हैं जिनके पास कानूनी अधिकार है। अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को ऐसा अहंकार नहीं दिखाना चाहिए।”
कानूनी संदर्भ
मामला आईटी अधिनियम की धारा 69A से जुड़ा है, जो सरकार को निम्नलिखित परिस्थितियों में किसी ऑनलाइन सामग्री को ब्लॉक करने का अधिकार देती है:
- भारत की संप्रभुता और अखंडता
- भारत का रक्षा
- राज्य की सुरक्षा
- विदेशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
- लोक व्यवस्था
- किसी दंडनीय अपराध को रोकना
X कॉर्प इंडिया का तर्क था कि क्या हर सरकारी अधिकारी को ऐसा नोटिस भेजने का अधिकार है।
सरकार का पक्ष
सरकार ने यह स्पष्ट किया कि:
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भारत में भी स्थानीय कानूनों का पालन करना होगा, जैसे वे अन्य देशों में करते हैं।
- सरकारी अधिकारी वैधानिक पदाधिकारी होते हैं, न कि कोई आम व्यक्ति।
- देश में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सोशल मीडिया को विनियमित करना आवश्यक है।
परीक्षाओं के लिए प्रासंगिकता
यह विषय निम्नलिखित मुद्दों से जुड़ा हुआ है:
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सरकारी नियंत्रण
- तकनीकी नियमन में न्यायपालिका की भूमिका
- डिजिटल संप्रभुता
- अधिकारियों की वैधानिक शक्ति
- आईटी अधिनियम और मध्यस्थ दिशानिर्देश
कर्नाटक से जुड़े तथ्य (जो परीक्षा में पूछे जा सकते हैं)
- राजधानी: बेंगलुरु
- मुख्यमंत्री: सिद्धारमैया (2025 तक)
- राज्यपाल: थावरचंद गहलोत
- महत्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यान: बांदीपुर, बन्नरघट्टा, नागरहोल
- प्रमुख नदियाँ: कावेरी, तुंगभद्रा, कृष्णा
- प्रसिद्ध न्यायालय: कर्नाटक उच्च न्यायालय (बेंगलुरु)
संभावित MCQs (विकल्प सहित)
Q1. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की वह कौन-सी धारा है, जिसके अंतर्गत सरकार कंटेंट हटाने का निर्देश दे सकती है?
A. धारा 66A
B. धारा 67
C. धारा 69A
D. धारा 70
उत्तर: C. धारा 69A
Q2. हाल ही में सोशल मीडिया कंपनी X और भारत सरकार के बीच केस की सुनवाई किस न्यायालय में हुई?
A. सुप्रीम कोर्ट
B. दिल्ली हाईकोर्ट
C. कर्नाटक हाईकोर्ट
D. बॉम्बे हाईकोर्ट
उत्तर: C. कर्नाटक हाईकोर्ट
Q3. केंद्र सरकार की ओर से इस केस में कौन पेश हुए?
A. आर. वेंकटरमणी
B. के.जी. राघवन
C. हरीश साल्वे
D. तुषार मेहता
उत्तर: D. तुषार मेहता
Q4. रेलवे मंत्रालय द्वारा भेजा गया नोटिस किस शहर से संबंधित वीडियो के लिए था?
A. बेंगलुरु
B. चेन्नई
C. हैदराबाद
D. मुंबई
उत्तर: C. हैदराबाद
Q5. “Tom, Dick और Harry” जैसी टिप्पणी किस संदर्भ में की गई थी?
A. भारतीय न्यायपालिका की आलोचना
B. संसद का अपमान
C. सरकारी अधिकारियों के अधिकार पर सवाल
D. सोशल मीडिया यूज़र्स की चर्चा
उत्तर: C. सरकारी अधिकारियों के अधिकार पर सवाल
UPSC-स्टाइल FAQs (उत्तर सहित)
Q1. आईटी अधिनियम के तहत अधिकारियों द्वारा असीमित कंटेंट हटाने के नोटिस देने के क्या प्रभाव हो सकते हैं?
उत्तर:
आईटी अधिनियम के तहत किसी भी अधिकारी को असीमित शक्ति देने से स्वतंत्र अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) का उल्लंघन हो सकता है। ऐसे अधिकारों का दुरुपयोग सेंसरशिप को जन्म दे सकता है। अतः, ऐसी प्रक्रियाओं के लिए पारदर्शिता, जवाबदेही और न्यायिक निगरानी अत्यंत आवश्यक है ताकि व्यक्तिगत अधिकारों और राष्ट्रीय हितों के बीच संतुलन बना रहे।
Q2. इस मामले में केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया सरकारी अधिकारियों की वैधानिक भूमिका को कैसे दर्शाती है?
उत्तर:
केंद्र की प्रतिक्रिया इस बात को रेखांकित करती है कि सरकारी अधिकारी वैधानिक रूप से नियुक्त पदाधिकारी होते हैं। IT अधिनियम के तहत उनके निर्णय कानून के अंतर्गत वैध माने जाते हैं। यह डिजिटल सामग्री पर भारत की संप्रभुता और नियमों के पालन की आवश्यकता को स्पष्ट करता है।
Q3. इस केस के संदर्भ में डिजिटल स्वतंत्रता और राज्य नियंत्रण के बीच संतुलन कैसे बनता है?
उत्तर:
यह मामला डिजिटल स्वतंत्रता और राज्य नियमन के बीच जारी संघर्ष को दर्शाता है। सोशल मीडिया स्वतंत्रता की बात करता है, लेकिन सरकार का दायित्व है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा और लोक व्यवस्था बनाए रखे। संतुलन इसी में है कि नियम पारदर्शी और न्यायसंगत हों और उन पर न्यायालय की निगरानी बनी रहे।
Q4. क्या अंतरराष्ट्रीय डिजिटल कंपनियों को भारत की कानूनी प्रक्रिया पर सवाल उठाने का अधिकार है?
उत्तर:
अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को भारत की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए। उन्हें यदि किसी कानून पर आपत्ति हो तो न्यायिक मार्ग अपनाना चाहिए, न कि सार्वजनिक रूप से अपमानजनक भाषा का प्रयोग करना। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में कानून की सर्वोच्चता और संस्थागत सम्मान अत्यंत आवश्यक है।